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'बचपन मेरा लौटा दो ' BACHPAN MERA LAUTA DO

         बचपन मेरा लौटा दो रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । दोस्त छिना , स्कूल छिना  छिना तुमने वो कागज का नाव , कोई जाए , जाकर पुछे क्या है  इसके लौटाने के भाव । पैसे रहते हुए कुछ खरीद न पाया ऐसा ये बाजार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । क्यों मुझे इतना बड़ा बनाया कि माँ के गोद में नहीं समा पाता , क्या किसी ने ऐसा रास्ता नहीं बनाया जो मुझे बचपन में पहुँचा पाता । सिर्फ मैं नहीं मेरे बुढ़े दोस्त भी जूझ रहे  सभी लाचार हैं , जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । स्वार्थ भरी इस दुनिया में  मैं बच्चा ही अच्छा था , एक तु ही समय था झुठा ,  और मेरा बचपन सच्चा था । तुझे छोड़ और किसी से शिकायत नहीं  मेरा ये संस्कार है । जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । कोई होता जो मेरे बचपन को  पिंजरे में डाल देता , ‘ तेरा ...

'अटल वंदन' ATAL VANDAN


नवभारत के मुखमंडल पर निराशा की जो छाया है,
मानो जैसे हर माँ ने अपने, भारत रत्न को खोया है।

विचारों में, भावनाओं में, बोलती कविताओं में
धरा के कण-कण में और पेड़ की शाखाओं में
इंसान में भगवान में, राम और श्याम में
रात के अंधेरे में, दिन के उजाले में
और गिरती आँसूओ में
भारत माँ का सच्चा सपूत कहीं खो गया,
जिसे देख आज एक नहीं सभी के हृदय ने विरह गीत गाया है 

नवभारत के मुखमंडल पर निराशा की जो छाया है,
मानो जैसे हर माँ ने अपने, भारत रत्न को खोया है।

मैं अबोध न आत्मा को देखा, न परमात्मा को देखा
निशब्द हूँ मैं, कालचक्र में समाते
ओजस्वी महापुरुष को देखा
मानव की असंख्य टोलियाँ चली, जयकारों की बोलियाँ चली
आज अर्पित पुष्प भी कितना रोया होगा,
यह नयन भी जागकर सोया होगा
इस वंदन की धरती, अभिनंदन की धरती पर
मेरा जननायक कहीं खो गया,
और वो दे चले सीख यही प्रभु की माया है

नवभारत के मुखमंडल पर निराशा की जो छाया है,
मानो जैसे हर माँ ने अपने, भारत रत्न को खोया है।

दृढ़ इच्छाशक्ति, चंचल मन और इरादे थे  जिनके अटल
शब्दों के निर्माता, सहज सरल यूगपुरूष पाना है अब विरल
हिंदी शब्दों में रचने बसने वाले,
आज वो शब्द भी अर्थहीन हो गया।
नहीं रहे निर्माता तुम्हारे, सुनकर जिसे
वो कविता भी आज कितना रोया होगा।
कविता का सृजन करते-करते मेरा मन भावुक हो गया,
शाश्वत है वो और उनकी कविताएँ, यही कह मन को बहलाया है 

नवभारत के मुखमंडल पर निराशा की जो छाया है,
मानो जैसे हर माँ ने अपने, भारत रत्न को खोया है।
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                                                                                                   ------------------ रोशन कुमार सिंह 



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