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'बचपन मेरा लौटा दो ' BACHPAN MERA LAUTA DO

         बचपन मेरा लौटा दो रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । दोस्त छिना , स्कूल छिना  छिना तुमने वो कागज का नाव , कोई जाए , जाकर पुछे क्या है  इसके लौटाने के भाव । पैसे रहते हुए कुछ खरीद न पाया ऐसा ये बाजार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । क्यों मुझे इतना बड़ा बनाया कि माँ के गोद में नहीं समा पाता , क्या किसी ने ऐसा रास्ता नहीं बनाया जो मुझे बचपन में पहुँचा पाता । सिर्फ मैं नहीं मेरे बुढ़े दोस्त भी जूझ रहे  सभी लाचार हैं , जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । स्वार्थ भरी इस दुनिया में  मैं बच्चा ही अच्छा था , एक तु ही समय था झुठा ,  और मेरा बचपन सच्चा था । तुझे छोड़ और किसी से शिकायत नहीं  मेरा ये संस्कार है । जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । कोई होता जो मेरे बचपन को  पिंजरे में डाल देता , ‘ तेरा ...

'दोस्त' Friend




'दोस्त'



क्या दोस्त ! तुमने भी आज मुँह मोड़ लिया,

प्रेम के धागे से बने रिश्तों को


प्रेम से तुने तोड़ दिया


सोचा ! समझ लिया है मैंने


तेरे सारे भावनाओं को


बात करने की शैली और तेरे इच्छाओं को


गलत था मैं.....हाँ गलत था मैं


जो समझ न सका तेरी जज्बातों को,


क्या होता जो अगर मैं


भविष्यग्याता बन, चल रहे हृदय में


उथल-पुथल को वश में कर लेता,


दोनों हृदय के बीच


विश्वास से बने इस पुल को


सदा के लिए अमर कर जाता,


और तो कुछ बात नहीं


एक छोटा सा याराना था,


मैं भी ठहरा नासमझ


रूक चुके जो कदम थे


थोड़ा-थोड़ा करके बढ़ाना था,


रूठ चुके मेरे यार को


मुझे ही तो मनाना था


रहेगा तेरा मान-सम्मान


हमेशा हमसे ऊँचा दोस्त,


क्या सोच रहा ये मन तेरा


देख इधर.......ध्यान से देख,


आज भी हाथ मेरे वैसे है


जैसा तुमने छोड़ा था,


बस थोड़े से गिले हैं


इन बहती आँसुओं को पोछकर,


अपनी जीद को कभी भेजो ईधर


जो तुमने है अपने मन में पाले,


आते ही टुट जाएगा


बहती आँसुओं को देखकर,


उम्मीद है फिर से एक रिश्ता बनाएगा


और फिर से एक रिश्ता बनाएगा |

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                               ----रोशन कुमार सिंह



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