Most Popular

'बचपन मेरा लौटा दो ' BACHPAN MERA LAUTA DO

         बचपन मेरा लौटा दो रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । दोस्त छिना , स्कूल छिना  छिना तुमने वो कागज का नाव , कोई जाए , जाकर पुछे क्या है  इसके लौटाने के भाव । पैसे रहते हुए कुछ खरीद न पाया ऐसा ये बाजार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । क्यों मुझे इतना बड़ा बनाया कि माँ के गोद में नहीं समा पाता , क्या किसी ने ऐसा रास्ता नहीं बनाया जो मुझे बचपन में पहुँचा पाता । सिर्फ मैं नहीं मेरे बुढ़े दोस्त भी जूझ रहे  सभी लाचार हैं , जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । स्वार्थ भरी इस दुनिया में  मैं बच्चा ही अच्छा था , एक तु ही समय था झुठा ,  और मेरा बचपन सच्चा था । तुझे छोड़ और किसी से शिकायत नहीं  मेरा ये संस्कार है । जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । कोई होता जो मेरे बचपन को  पिंजरे में डाल देता , ‘ तेरा ...

'मैं मशीन बन गया ' MAI MACHINE BAN GAYA





     मैं मशीन बन गया        

थका हारा रोज शाम को,
लौट जाता हूँ अपने घर की ओर ।

जिम्मेवारियों की जंजीरों से,
जकड़ गया हूँ जाऊँ तो जाऊँ किस ओर ।।

थोड़ा सा थोड़ा सा करते-करते,
अब काम बहुत बड़े होने लगे ।

मना भी करता तो मैं किसे,
मेरी जरूरतें जो बड़े होने लगे ।

लगता है जैसे मैं एक मशीन बन गया,
यही सोचते-सोचते जिंदगी गमगीन बन गया ।

भागा फिरता हूँ सुबह से शाम ईधर-उधर,
इस काम के व्यस्तता में संबंध टुट गए जो थे मधुर ।

न चाहकर भी थकने लगा हूँ मैं,
बातें अब छोटी-छोटी करने लगा हूँ मैं ।

चला था मैं कहाँ से, कहाँ पहुँच गया,
जिंदगी में कुछ बदल न पाया बस समय बदलता गया ।

दोस्त भी मेरे अब सारे न जाने कहाँ चले गए,
शायद अपने जिम्मेवारियों का बोझ ढ़ोने चले गए ।

रात के अंधेरे में जैसे खड़ा हो गया हूँ
एक ओर कुआँ तो खाई है एक ओर,
जिम्मेवारियों की जंजीरों से,

जकड़ गया हूँ जाऊँ तो जाऊँ किस ओर ।
थका हारा रोज शाम को,
लौट जाता हूँ अपने घर की ओर ।

जिम्मेवारियों की जंजीरों से,
जकड़ गया हूँ जाऊँ तो जाऊँ किस ओर ।

                              ---------- रोशन कुमार सिंह


Comments

Popular posts from this blog

'बचपन मेरा लौटा दो ' BACHPAN MERA LAUTA DO

मेरा गाँव मेरे खेत My village and my field

‘बचपन की चाह’ BACHPAN KI CHAH