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'बचपन मेरा लौटा दो ' BACHPAN MERA LAUTA DO

         बचपन मेरा लौटा दो रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । दोस्त छिना , स्कूल छिना  छिना तुमने वो कागज का नाव , कोई जाए , जाकर पुछे क्या है  इसके लौटाने के भाव । पैसे रहते हुए कुछ खरीद न पाया ऐसा ये बाजार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । क्यों मुझे इतना बड़ा बनाया कि माँ के गोद में नहीं समा पाता , क्या किसी ने ऐसा रास्ता नहीं बनाया जो मुझे बचपन में पहुँचा पाता । सिर्फ मैं नहीं मेरे बुढ़े दोस्त भी जूझ रहे  सभी लाचार हैं , जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । स्वार्थ भरी इस दुनिया में  मैं बच्चा ही अच्छा था , एक तु ही समय था झुठा ,  और मेरा बचपन सच्चा था । तुझे छोड़ और किसी से शिकायत नहीं  मेरा ये संस्कार है । जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । कोई होता जो मेरे बचपन को  पिंजरे में डाल देता , ‘ तेरा ...

रिश्ते और रिवाज Rishtey aur Riwaz



रिश्ते और रिवाज

रिश्ते और रिवाज अब कहाँ कोई निभाते हैं,
नया जो मिलता गया बस उसी को अपनाते हैं |

सारे के सारे लोग एक दुसरे को भुलने लगे,
नये पर ज्यादा पुराने पर विश्वास कम करने लगे |

लोग तो अब जैसे दिल के मेहमान बन गए हैं,
अपने ही शहर में अपने लोग अनजान बन गए हैं |

पुराने अहसासों को न जाने क्यों छिपाते हैं,
नया जो मिलता गया बस उसी को अपनाते हैं |

मेरे अपने ही मेरा परिचय पुछा करते हैं,
अपनी पहचान छुपाने के लिए मुखौटा लगाया करते हैं |

दिन के उजियारे में बोलते हैं रात हो गई,
सब समझता हूँ.... वो जाने अब क्या बात हो गई |

दुसरों को हमदर्द हमें बेवकुफ बनाते हैं,
नया जो मिलता गया बस उसी को अपनाते हैं |

एक वक्त लगा काबिल न था मैं तेरे लिए,
 सही है, क्यों छोड़ते किसी और को तुम मेरे लिए |

हमारी औकात का हमें पता नहीं वो बताते हैं,
नया जो मिलता गया बस उसी को अपनाते हैं |

रिश्ते और रिवाज अब कहाँ कोई निभाते हैं,
नया जो मिलता गया बस उसी को अपनाते हैं |
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                 ----------------- रोशन कुमार सिंह 

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