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'बचपन मेरा लौटा दो ' BACHPAN MERA LAUTA DO

         बचपन मेरा लौटा दो रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । दोस्त छिना , स्कूल छिना  छिना तुमने वो कागज का नाव , कोई जाए , जाकर पुछे क्या है  इसके लौटाने के भाव । पैसे रहते हुए कुछ खरीद न पाया ऐसा ये बाजार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । क्यों मुझे इतना बड़ा बनाया कि माँ के गोद में नहीं समा पाता , क्या किसी ने ऐसा रास्ता नहीं बनाया जो मुझे बचपन में पहुँचा पाता । सिर्फ मैं नहीं मेरे बुढ़े दोस्त भी जूझ रहे  सभी लाचार हैं , जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । स्वार्थ भरी इस दुनिया में  मैं बच्चा ही अच्छा था , एक तु ही समय था झुठा ,  और मेरा बचपन सच्चा था । तुझे छोड़ और किसी से शिकायत नहीं  मेरा ये संस्कार है । जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । कोई होता जो मेरे बचपन को  पिंजरे में डाल देता , ‘ तेरा ...

'मेरी तनहाई' MERI TANHAI



( नोटः- दोस्तों! यह मिली-जुली हिन्दी-उर्दु कविता है। इसमें मैंने एक उदास प्रेमिका का जिक्र किया है जिसमें वह बिल्कुल अकेला है और यह भी बताया है कि अपने प्रेमिका को याद कैसे करता है, प्रेमिका के जुदाई ने उसका कैसा हाल बना दिया है। )

मेरी तनहाई

खामोश बैठे देख के पूछा मेरी तनहाई ने,
क्या हाल तेरा बना दिया इतनी थोड़ी जुदाई ने।

चेहरे पे बनाये रखे हो ये बनावटी मुस्कान,

छुपाये न छुपेगा ये सभी लोग जाएंगे जान

मंजील अभी दूर है पर वो तुम्हारे करीब है,

इस खेल में अभी वो अमीर पर तुम गरीब है

एक बार नहीं सौ बार कहा है तुम्हारे भाई ने,

क्या हाल तेरा बना दिया इतनी थोड़ी जुदाई ने।

खामोश बैठे देख के पूछा मेरी तनहाई ने,
क्या हाल तेरा बना दिया इतनी थोड़ी जुदाई ने।

पता नहीं आँखा में नींदे कहाँ गुम हो गई,

खोये-खोये रहते हो जैसे कहीं बड़ी रूम हो गई

दरवाजे से जैसे खुशबु भरा हवा का झोंका आया है,

शायद वो तुम्हारे सनम की बालों की महक लाया है

जाने कितने दिल रौशन किए इस एक सलाई ने,

क्या हाल तेरा बना दिया इतनी थोड़ी जुदाई ने।

खामोश बैठे देख के पूछा मेरी तनहाई ने,
क्या हाल तेरा बना दिया इतनी थोड़ी जुदाई ने।

इन नजरों की तमन्ना है बस एक झलक अपने यार की,

आस लगाए बैठा हूँ बस थोड़े से उनके प्यार की

इन चंद दिनों ने कितने वर्षों का एहसास कराया है,

अब तो रहम कर उपरवाले तुने कितने को मिलाया है

इसकी हालत देखकर आज रोई है इसकी माई ने,

क्या हाल तेरा बना दिया इतनी थोड़ी जुदाई ने।

खामोश बैठे देख के पूछा मेरी तनहाई ने,
क्या हाल तेरा बना दिया इतनी थोड़ी जुदाई ने।

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---------------- रोशन कुमार सिंह



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