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'बचपन मेरा लौटा दो ' BACHPAN MERA LAUTA DO

         बचपन मेरा लौटा दो रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । दोस्त छिना , स्कूल छिना  छिना तुमने वो कागज का नाव , कोई जाए , जाकर पुछे क्या है  इसके लौटाने के भाव । पैसे रहते हुए कुछ खरीद न पाया ऐसा ये बाजार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । क्यों मुझे इतना बड़ा बनाया कि माँ के गोद में नहीं समा पाता , क्या किसी ने ऐसा रास्ता नहीं बनाया जो मुझे बचपन में पहुँचा पाता । सिर्फ मैं नहीं मेरे बुढ़े दोस्त भी जूझ रहे  सभी लाचार हैं , जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । स्वार्थ भरी इस दुनिया में  मैं बच्चा ही अच्छा था , एक तु ही समय था झुठा ,  और मेरा बचपन सच्चा था । तुझे छोड़ और किसी से शिकायत नहीं  मेरा ये संस्कार है । जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । कोई होता जो मेरे बचपन को  पिंजरे में डाल देता , ‘ तेरा ...

'हाशिए भर जिंदगी' HASHIYE BHAR ZINDAGI




(नोटः- दोस्तों! यह कविता एक ऐसे व्यक्ति के उपर आधारित है जो बिल्कुल पढ़ा-लिखा बेरोजगार है जो घर पर ही हर वक्त रहा करता है और अपने भविष्य के बारे में सोचा करता है और उसके बारे में इस कविता के माध्यम से यह भी बताया गया है कि कैसे वो अवसादग्रस्त होकर पागलों जैसा व्यवहार करने लगा है और उसे यह भी मलाल होता है कि वो अपने जीवन में सफल न हो सका, अपने माँ-बाप का नाम रौशन न कर सका। )

हाशिए भर जिंदगी

हाशिए भर की जिंदगी मेरी है कहानी,
थोड़ा बता दिया, थोड़ी और है बतानी।

न ठिकाना, न कोई मंजिल घुमे जा रहा हूँ,
क्या कहूँ शायद इसी से पगला कहा जा रहा हूँ
एक मैं ही ऐसा ही शख्स हूँ ऐसी मेरी है कहानी,
थोड़ा बता दिया, थोड़ी और है बतानी।

जिंदगी में कुछ बन न पाया पिता को है अफसोस
कोख देख-देख कर माता भी रही होगी उसे कोस
सिर्फ मेरा दिया उनके आँख में है पानी
थोड़ा बता दिया, थोड़ी और है बतानी।

आज मेरी जिंदगी हाशिए पर है पहुँच गई,
न खत्म होने वाली सवालों के कगार पर है रूक गई
थोड़ी बह गई जिंदगी, थोड़ी और बाकी है बहानी,
थोड़ा बता दिया, थोड़ी और है बतानी।

चंद कविताओं का बस अपना है मेला,
भीड़ में खो जाने की कोशिश मेें है ये अकेला
ये मेरी सच्चाई है नहीं मेरी है नादानी,
पूरा बता दिया, कुछ और नहीं बची है बतानी

हाशिए भर की जिंदगी मेरी है कहानी,
थोड़ा बता दिया, थोड़ी और है बतानी।

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                                      रोशन कुमार सिंह

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