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'बचपन मेरा लौटा दो ' BACHPAN MERA LAUTA DO

         बचपन मेरा लौटा दो रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । दोस्त छिना , स्कूल छिना  छिना तुमने वो कागज का नाव , कोई जाए , जाकर पुछे क्या है  इसके लौटाने के भाव । पैसे रहते हुए कुछ खरीद न पाया ऐसा ये बाजार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । क्यों मुझे इतना बड़ा बनाया कि माँ के गोद में नहीं समा पाता , क्या किसी ने ऐसा रास्ता नहीं बनाया जो मुझे बचपन में पहुँचा पाता । सिर्फ मैं नहीं मेरे बुढ़े दोस्त भी जूझ रहे  सभी लाचार हैं , जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । स्वार्थ भरी इस दुनिया में  मैं बच्चा ही अच्छा था , एक तु ही समय था झुठा ,  और मेरा बचपन सच्चा था । तुझे छोड़ और किसी से शिकायत नहीं  मेरा ये संस्कार है । जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । कोई होता जो मेरे बचपन को  पिंजरे में डाल देता , ‘ तेरा ...

‘बचपन की चाह’ BACHPAN KI CHAH


‘बचपन की चाह’

परिचयः- दोस्तों! यह कविता एक बुजुर्ग से संबंधित है जो अपनी उम्र के लगभग पचास वर्ष पार कर चुका है और वो फिर से अपने बचपन की ओर लौट जाना चाहता है, वहीं जाकर बस जाना चाहता है। इस कविता के माध्यम से वो अपने बचपन के गुजरे हुए दिनों को याद करता है।



कितना बदल गया है इन पचास सालों में,
खो जाने दो मुझे बचपन के ख्यालों में।

आज मेरे पास जिम्मेदारियों की भीड़ है,

लड़कपन की ओर निकला दिमाग से तीर है

नन्हें हाथों से पेड़ो पे चढ़के फल तोड़ना,

और यही हाथों से नदी के किनारे तैरना

काले कुछ बाल बच गए हैं सफेद बालों में,

खो जाने दो मुझे बचपन के ख्यालों में।


काँच की गोलियों को ले जेब में टनटनाना,

चार आने के सिक्कों को ले हाथों में खनखनाना

गिल्ली-डंडा से  काँच की खिड़कियों का टुटना,

इस मासुमियत में शैतानी कामों का करना

जब पड़ते थे पिता के दो हाथ गालों में,

खो जाने दो मुझे बचपन के ख्यालों में।



सुबह-सुबह बच्चों के झुंड में स्कूल जाना,

और मास्टर जी की छड़ी छुपा देना

आँखे लालकर हमारे कानों का ऐंठना,

मिट्टी भरी जमीन पर पेड़ों के निचे बैठना

वो मिर्ची देखकर ना खाना दालों में,

खो जाने दो मुझे बचपन के ख्यालों में।



चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ गए हैं मेरे,

बची यादों पर धूल पड़ गए हैं मेरे

आज उस बचपन की फिर से मेरी चाह है,

पर ये निकले समय को नहीं परवाह है

पा लेना चाहता हूँ वो दिन हर हालों में,

खो जाने दो मुझे बचपन के ख्यालों में।



कितना बदल गया है इन पचास सालों में,
खो जाने दो मुझे बचपन के ख्यालों में।

**************

             --------- रोशन कुमार सिंह

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