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'बचपन मेरा लौटा दो ' BACHPAN MERA LAUTA DO

         बचपन मेरा लौटा दो रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । दोस्त छिना , स्कूल छिना  छिना तुमने वो कागज का नाव , कोई जाए , जाकर पुछे क्या है  इसके लौटाने के भाव । पैसे रहते हुए कुछ खरीद न पाया ऐसा ये बाजार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । क्यों मुझे इतना बड़ा बनाया कि माँ के गोद में नहीं समा पाता , क्या किसी ने ऐसा रास्ता नहीं बनाया जो मुझे बचपन में पहुँचा पाता । सिर्फ मैं नहीं मेरे बुढ़े दोस्त भी जूझ रहे  सभी लाचार हैं , जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । स्वार्थ भरी इस दुनिया में  मैं बच्चा ही अच्छा था , एक तु ही समय था झुठा ,  और मेरा बचपन सच्चा था । तुझे छोड़ और किसी से शिकायत नहीं  मेरा ये संस्कार है । जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । कोई होता जो मेरे बचपन को  पिंजरे में डाल देता , ‘ तेरा ...

‘एक अपनापन सा हो गया’ EK APNAPAN SA HO GAYA



‘एक अपनापन सा हो गया’


परिचयः- दोस्तों! यह एक रोमांटिक कविता है जिसमें यह दर्शाया गया है कि एक पुरूष को महिला के साथ मित्रता हो गई है मगर वो आदमी को इतना अपनापन सा हो गया है कि उसे लगता है कि कहीं वा महिला से प्रेम न कर बैठे। महिला को भी पुरूष से काफी लगाव हो गया है परन्तु वो भी कुछ कह नहीं पा रही है, इसी ताने-बाने को इस कविता में चित्रित किया है।


वो कहते हैं प्यार नहीं दोस्ती सा हो गया है,
लगता है जैसे एक अपनापन सा हो गया है।


कैसे करूँ यकीन ये प्यार वो दोस्ती

कोई तो ये बताए ये हो गया है जटिल

प्यार नहीं है सस्ती, शायद कर रहें हैं वो मस्ती

किसी को बताने की जरूरत नहीं मुझे गया है मिल

वो कहते हैं अंदर से एक नयापन सा हो गया है

लगता है जैसे एक अपनापन सा हो गया है



नहीं चाहकर भी जाना बन गया है मजबूरी,

आखिर कहीं तो छुपा है वो जो कम करता है दूरी

नहीं बस आज भर आज जाना है बहुत जरूरी

महसूस होता है जैसे फितरत में हो तेरी

वो कहते हैं नहीं रे एक आदत सा हो गया है

लगता है जैसे एक अपनापन सा हो गया है



पता नहीं किस ओर चले जा रहे हैं,

धुँधला भी नहीं दिखता, क्या है वहाँ

हमें छोड़ वो उधर ही बढ़े जा रहे हैं

अगली पिढ़ी को मिलेगा कुछ, जा रहे हैं जहाँ

लगता है मुझे ये सब लड़कपन सा हो गया है

लगता है जैसे एक अपनापन सा हो गया है



उम्मीद नहीं है मुझे, हमेशा साथ वो देगी

शायद जानकर भी बनते हैं वा अनजान

एक दिन वो आएगा, जब कुछ वो इन्हें कहेंगी

साथी और दोस्ती में इतनी तो जरूर है इन्हें पहचान

लगता है मुझे अब, बेवजह सा हो गया है

वो कहते हैं कुछ अपनापन सा हो गया है


वो कहते हैं प्यार नहीं दोस्ती सा हो गया है,
लगता है जैसे एक अपनापन सा हो गया है।

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----------- रोशन कुमार सिंह

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