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'बचपन मेरा लौटा दो ' BACHPAN MERA LAUTA DO

         बचपन मेरा लौटा दो रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । दोस्त छिना , स्कूल छिना  छिना तुमने वो कागज का नाव , कोई जाए , जाकर पुछे क्या है  इसके लौटाने के भाव । पैसे रहते हुए कुछ खरीद न पाया ऐसा ये बाजार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । क्यों मुझे इतना बड़ा बनाया कि माँ के गोद में नहीं समा पाता , क्या किसी ने ऐसा रास्ता नहीं बनाया जो मुझे बचपन में पहुँचा पाता । सिर्फ मैं नहीं मेरे बुढ़े दोस्त भी जूझ रहे  सभी लाचार हैं , जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । स्वार्थ भरी इस दुनिया में  मैं बच्चा ही अच्छा था , एक तु ही समय था झुठा ,  और मेरा बचपन सच्चा था । तुझे छोड़ और किसी से शिकायत नहीं  मेरा ये संस्कार है । जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । कोई होता जो मेरे बचपन को  पिंजरे में डाल देता , ‘ तेरा ...

‘मैं भला कैसे चुप रहता’ MAI BHALA KAISE CHUP RAHTA


‘मैं भला कैसे चुप रहता’

परिचयः- यक कविता हिन्दी भाषा के ऊपर आधारित है जिसमें हमने हिन्दी के खो रहे अस्तित्व को बचाने के लिए अपने अंदर हिन्दी भक्ति जगाने का प्रयास किया है, ताकि यह पढ़ने के बाद सभी को लगे कि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा ही नहीं मातृभाषा भी है और हमें इसे बचाये रखने तथा प्रचार-प्रसार करने एवं अपनी दिनचर्या में शामिल करने के लिए बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना होगा ।

बातें किसी और की होती
तो छोड़ भी देता
चर्चा जब
अपनी हिन्दी की है
तो मैं भला कैसे चुप रहता

इस अंग्रेजी और 
हिंन्दी के लड़ाई में
मेरी हिन्दी को जब
कोई दबा रहा था
तो मैं भला कैसे चुप रहता

जब शहर के बाजारों में
देहात के गलियारों में
अंगेजी मुझपर हँस रही थी
तो मैं भला कैसे चुप रहता

हमारी तो अपनी है हिन्दी
हृदय से है हमने अपनाया
फिर कोई मजाक उड़ाता
तो मैं भला कैसे चुप रहता

जब हिन्दी ने आह्वान किया
हे भारतवासी
मेरी आवाज बनो
क्यों खड़े हो, गुंगे बनकर
तो मैं भला कैसे चुप रहता

अंग्रेजियत के जंजीरों से
हमारी हिन्दी को
बांधने की कोई चेष्टा करता
तो मैं भला कैसे चुप रहता

इस अंग्रेजियत के चिता पर
जब हमारी हिन्दी को
किसी ने जलाना चाहा
तो मैं भला कैसे चुप रहता

आपसी प्रेमरूपी हिन्दी में
जब अंग्रेजी ने
नफरत फैलाना चाहा
तो मैं भला कैसे चुप रहता

भाषाओं के भीड़ में
मेरी हिन्दी को
अपना परिचय देना पड़े
तो मैं भला कैसे चुप रहता


यादें किसी और की आती
तो छोड़ भी देता
यादें जब अपनी हिन्दी की है
तो मैं भला कैसे चुप रहता

*****************

------------ रोशन कुमार सिंह

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