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'बचपन मेरा लौटा दो ' BACHPAN MERA LAUTA DO

         बचपन मेरा लौटा दो रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । दोस्त छिना , स्कूल छिना  छिना तुमने वो कागज का नाव , कोई जाए , जाकर पुछे क्या है  इसके लौटाने के भाव । पैसे रहते हुए कुछ खरीद न पाया ऐसा ये बाजार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । क्यों मुझे इतना बड़ा बनाया कि माँ के गोद में नहीं समा पाता , क्या किसी ने ऐसा रास्ता नहीं बनाया जो मुझे बचपन में पहुँचा पाता । सिर्फ मैं नहीं मेरे बुढ़े दोस्त भी जूझ रहे  सभी लाचार हैं , जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । स्वार्थ भरी इस दुनिया में  मैं बच्चा ही अच्छा था , एक तु ही समय था झुठा ,  और मेरा बचपन सच्चा था । तुझे छोड़ और किसी से शिकायत नहीं  मेरा ये संस्कार है । जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । कोई होता जो मेरे बचपन को  पिंजरे में डाल देता , ‘ तेरा ...

‘सर्दी में पत्नी जी का गुस्सा’ SARDI MEN PATNIJI KA GUSSA




            पत्नी जैसे प्राणी से तो हर कोई अवगत है । जिनकी बहुत बड़ी पहचान है बात-बात पर रूठ जाना और गुस्सा करना................वो भी अगर पति बीसीसीएल में हो तो फिर उनके गुस्से के क्या कहने । मैं भी इसी तरह के प्राणी के साथ जीवन गुजर-बसर कर रहा हूँ, जो बात-बात पर आपको उपदेश देने का ही काम करेंगी, चाहे गलती आपकी हो या फिर उनकी ।
सर्दी का महीना.......वो भी पूस(पौष) का, ठंढ़ अपने चरम पर था । दिन छोटा होने के कारण, आफिस से घर आते-आते थोड़ा अंधेरा हो ही गया था । घर पहुँचा तो देखा कि मैडम....मतलब हमारी पत्नी जी मुझे गूस्से से घुर रही हैं, तो मैं भी अपने आप को ऊपर से निचे तक देखने लगा भाई क्या हुआ ? फिर वो अपने रसोई में चली जाती हैं और मैं तरोताजा होने के लिए नलके के पास चला जाता हूँ, हाथ-पैर धोते समय सोचता भी रहता हूँ कि क्या कुछ बात है जो मुझे पत्नी जी घुर रही थी । फिर सोचा छोड़ो यार इन औरतों का तो रोज का यही हाल है । अचानक पत्नी जी की रसोई में से आवाज आई- ‘‘आजकल मफलर नहीं लगा रहे हैं, हिरो बनना है क्या ?........अरे ठंढ़ का मौसम है सर्दी-उर्दी लग जाएगी ।’’ तभी अचानक याद आया कि मफलर तो गाड़ी की डिक्की में ही रह गया था और हेलमेट पहनकर आॅफिस से चला आया । मैं अक्सर दास्तानें और मफलर इस्तेमाल करने के बाद मोटरसाईकिल के डिक्की में रख दिया करता हूँ ।
            तरोताजा होने के बाद गरम कपड़े मैंने पहने और घर का एक बड़ा वाला मफलर अपने गले में लपेट कर कुर्सी पर बैठा ही था कि पत्नी जी एक कप गरमा-गरम चाय लेकर पहुँच गई । चाय पी रहा था, पत्नी जी बगल में बैठी थी और फिर से शुरू हो गई । एक बार में तो इन औरतों का बात पुरा होता ही नहीं न है- ‘‘अजी.....कुछो मालुम है पुस का महीना आ गया है, ठंढ़ बढ़ गई है । थोड़ा सावधानीपूर्वक ड्युटी किजीए...............मोटरसाईकिल चलाते हैं तो उस पर हवा नहीं लगती है का, मफलर है ना आपके पास तो उसको गर्मी में इस्तेमाल किजिएगा का । सुनिए जी आगे से इसका ध्यान रखिएगा । मैंने कहा- ‘‘नहीं मैडम जी उ बात का है कि जरा जल्दी में था तो मफलर डिक्की से निकालकर गले में लगाना भुल गये थे ।’’ बात मेरी पूरी भी नहीं हुई थी कि उन्होंने कहा आज रात्रि भोजन में बिहारी व्यंजन बनेगा तभी मैं समझ गया कि ये लिट्टी-चोखा की बात कर रहे हैं तो मैंने भी कह दिया- ‘‘क्यों नहीं अच्छा है मेरा पसंदीदा फुड है....बनाईए ।’’ रात को लिट्टी चोखा का भोजन हुआ और मैं अपने बिस्तर पर चला गया । कब नींद लग गयी पता ही नहीं चला ।
            रात करीब एक बजे नींद खुली तो मुझे प्यास की तलब हुई । मैंने सोचा कि इतनी ठंढ़ी में भी प्यास जोरों से कैसे लग गई भाई..........फिर याद आया.......ये सब लिट्टी के सत्तु का कमाल है । बिस्तर पर से उठा तो देखा कि सब के सब घोड़ा बेच कर सो रहे हैं । मेरी भी हिम्मत इतनी ठंढ़ में श्रीमती को जगाने की नहीं हुई । फिर स्वयं हाल में जाकर लाईट को जलाया और रसोईघर में गया जो से सटे था । रसोईघर में जाने के बाद मुझे नार्मल पानी मिल गया लेकिन वो भी इतना ठंढ़ा जैसे अभी-अभी फ्रिज से निकाला गया हो । पानी गर्म करने की व्यवस्था थी मगर आलस के साथ-साथ प्यास इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि आव देखा ना ताव और ठंढ़ा पानी ही दो ग्लास पी गया ।
बस फिर क्या था सुबह से मेरी कहानी शुरू हो गई । हाँ भाई......ज्योंही सुबह को नींद खुली, लगता है जैसे नाक की दोनों नलियाँ हमेशा के लिए बंद हो चुकी है, सर भारी-भरकम हो गया है, गले से तो आवाज ही नहीं निकल पा रही है । ज्यादा देर नहीं लगा मुझे समझने में कि मुझे जुकाम हो गया । कुछ देर बाद नाक से पानी भी चलने लगा । पत्नी जी जब चाय लेकर मेरे पास आती है तो पूछती हैं - ‘‘क्याजी आँख से आँसू क्यों निकल रहे हैं, क्या बात है ? रात को कोई बुरा सपना देखे हैं क्या ?’’ मैंने कहा- ‘‘नहीं मैडम राम में ठंढ़ा पानी पी लिये थे लगता है जुकाम हो गया है...........उसी से ।’’ इतना कहना था कि बस फिर क्या था वो सारा घर सर पे उठा लेती है..........‘‘.अजी आपको तो घर-दुआर, बाल-बच्चे की फिकरे नहीं है । आप कभी बिना मफलर के गाड़ी चलाते हैं, कभी रात में ठंढ़ा पानी पी लेते हैं । आप अपने आपको सुपरमैन समझ लिए हैं का ? बार-बार कहती हूँ कि ठंढ़ बढ़ गई है थोड़ा सावधानी पूर्वक अपना ध्यान रखिए । अब बैठिए घर पर । आपका कुछ नहीं हो सकता, एक तो सिर्फ ड्युटी करनी है वो भी सही से नहीं कर सकते ।’’ तभी मुझे अचानक लगा कि घर पर रूक गया तो इनके ताने सुन-सुनकर मेरी सर्दी जल्दी ही खाँसी में बदल जाएगी । तभी मैंने श्रीमती से कहा.........सुनिए..........मेरा लंच बना दिजीएगा..........आॅफिस जाना है । इतना कहना था कि पत्नी जी कहते हैं- ‘‘अरे आप तो गजबे हैं आप वहाँ नाक का सुड़काहट सुनाईएगा कि काम किजीएगा ।’’ मैंने कहा वैसी कोई बात नहीं है, हम जाते वक्त रास्ते में मेडिकल से दवा ले लूँगा, ठीक हो जाएगा । पत्नी जी कहती है- ‘‘दवा लेने की जरूरत नहीं पानी गर्म कर दे रही हूँ भाप को नाक स ेले लिजिए.......आराम हो जाएगा और साथ में तुलसी और मिश्री को घी में गर्म कर देती हूँ.......खा लिजिएगा.......जल्द राहत मिल जाएगा ।’’ बस फिर क्या मेरी हिम्मत जो मैं ना करता ।
            श्रीमती के घरेलु नुस्खे लेने के बाद आॅफिस के लिए मोटरसाईकिल घर से ज्योहीं निकालता हूँ, पड़ोस में एक महतो जी हैं, नजर हम पर पड़ जाती है । महतो जी कहते हैं ‘‘क्या है रोशन बाबु क्या चल रहा है आजकल ? सब ठीक-ठाक है न, ठंढ़ बहुत बढ़ गई है ।’’ इतना वो बोले थे कि मेरी छिंक निकल गई । मै रूमाल निकालता हूँ और नाक साफ करने लगता हूँ तभी महतो जी कहते हैं ‘‘लगता हैं आपको सर्दी लग गई है रोशन बाबु..............ऐसा काहे नहीं करते हैं अभी-अभी हमने दुध उबाला है गरम-गरम पी लीजिए, आराम हो जाएगा ।’’ मैंने ना बोला मगर लगता है नाक जाम रहने के वजह से उसे वो हाँ समझ बैठे । बेचारे महतो जी एक सच्चे पड़ोसी की तरह अपने घर के अंदर चले गए गरम दुध लाने और मैं मोटरसाईकिल पर पड़ी धुल को साफ करने लगा । तभी वो एक गरमा-गरम दूध का गिलास लेकर चले आते हैं तो मैं देखता हूँ कि थोड़ी सी हल्दी भी दूध में उन्होंने मिला रखी है । खैर......मैं पी लेता हूँ , महतो जी को बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूँ और चल देता हूँ आफिस के लिए । थोड़ी दूर पहुँचा था कि याद आया कि अभी भी मफलर डिक्की में ही है तभी अचानक पत्नी जी का चेहरा ध्यान में आता है और अपने आप से कहता हूँ अच्छा हुआ आते वक्त पत्नी जी की नजर मुझपर नहीं पड़ी नही ंतो एक बार और हमारी क्लास लग ही जाती  । ये सोचते-सोचते गाड़ी को सड़क किनारे रोकी, डिक्की से मफलर निकाला और पूरे सर में अच्छी तरह लपेट लिया । रास्ते भर छिंकते-छिंकते आॅफिस को पहुँचा ।
      चूँकि मैं बिहारी हूँ इसलिए मेरे सहकर्मी अक्सर मुझे बिहारी बाबु कहकर ही पुकारा करते हैं । आफिस पहुँचने के बाद तिवारी जी मिले.......... बोलते हैं- ‘‘आज तो भाई पूरे धनबाद का ठंढ़ा बिहारिये बाबु को लग रहा है । पूरा जैकेट, मफलर, दास्ताने लपेटे हुए हैं......क्या बिहारी बाबु सुबह-सुबह कुँआ के पानी से नहा लिए थे का ?’’ मै कहता हूँ ‘‘उ का बात है ना तिवारी जी राते ठंढ़ा पानी पी लिए थे उसी का असर है ।’’
मगर तिवारी जी इतने पर कहाँ रूकने वाले थे उनको तो बस मुद्दा मिल गया था मुझे परेशान करने का । कहते हैं........‘‘हाँ ठंढ़ा पानी पी लिए थे तो आज गर्म पानी पी लिजिएगा........ठीक हो जाएगा (यहाँ पर उनके गर्म पानी का तात्पर्य शराब से था) । आँए बिहारी बाबु..............बीसीसीएल में नौकरी किजिएगा और रात को गर्म पानी नहीं पिजिएगा तो सर्दी नहीं लगेगा ।’’ तिवारी जी बोल ही रहे थे कि उनका साथ देने शर्मा जी आ गए और कहते हैं....‘‘क्या तिवारी जी बिहारी बाबु को गलत सलाह क्यों देते हैं भाई............जानते हैं तिवारी जी अगर कोल इण्डिया का हर कर्मचारी बिहारी बाबु जैसा हो जाए न तो ये सर्दी से मुक्त भले ना हो मगर बीसीसीएल ही नहीं कोल इंडिया तो जरूर नशामुक्त हो जाएगा ।’’ तभी मुझे कन्फ्युजन हुआ कि शर्मा जी मेरा मजाक उड़ा रहे हैं या मेरी बड़ाई.........लेकिन एक बात तो है जो भी बोले लाख टके की बात बोले शर्मा जी । थोड़ी देर बाद सभी अपने-अपने काम में लग गए ।
      दोपहर भोजनावकाश में पत्नी जी का फोन आता है कहती हैं-‘‘तबियत आपकी ठीक है न जी, शाम को समय से चल आईएगा और रास्ते से सब्जी भी खरीद लिजिएगा । जैकेट, मफलर भी अच्छी तरह से पहन लिजिएगा ।’’
      शाम को काम खत्म करने के बाद आॅफिस से घर के लिए चला तो लगा जैसे अंधेरा बहुत तेजी से उजाले को निगल रही है । अंधेरे के इस हरकत से मुझे भी डर लगने लगा क्योंकि पत्नी जी समय से घर पहुँचने के लिए पहले बोल चुकी थी । मगर समय का घमंड देखिए कि रास्ते में ही वो अंधेरा लेकर चला आया और मेरा दुर्भाग्य की घर पहुँचने के लगभग दो-ढ़ाई कि0मी0 पहले ही मेरी गाड़ी डगमगाने लगी । समझते देर न लगी कि कोई टायर पंचर हो गया । गाड़ी रोकी तो देखा कि पिछला टायर पंचर । अब तो हुई मुसिबत एक तो अंधेरी रात और वो भी ठंढ़ी ऊपर से मैं सर्दी-जुकाम से बिल्कुल बेहाल । फिर क्या पैदल ही गाड़ी को खिंचने लगा । गाड़ी खिंचते-खिंचते रास्ते में गर्मी का एहसास हुआ तो सब जैकेट, मफलर खोलकर डिक्की में बंद कर दिया । आखिरकार किसी तरह घर पहुँच गया क्योंकि रास्तें में कोई पंचर दुकान खुली मिली ही नहीं । घर पहुँचकर जैसे ही पत्नी जी के दर्शन होते हैं, सोच लिजिए कि मेरा क्या हाल हुआ होगा। नहीं समझे.......बताता हुँ........एक तो मैं लेट, दूसरा सारा जैकेट, मफलर खोलकर डिक्की में रख चुका था । और तो और सब्जी भी रास्ते में खरीदना भूल गया था । इससे पहले कि मैं उन्हें गाड़ी पंचर होने की बात बताता.............शुरू हो गए.......ननस्टाप ।

                                                *** रोशन कुमार सिंह ****


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