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Showing posts from August, 2018

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'बचपन मेरा लौटा दो ' BACHPAN MERA LAUTA DO

         बचपन मेरा लौटा दो रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । दोस्त छिना , स्कूल छिना  छिना तुमने वो कागज का नाव , कोई जाए , जाकर पुछे क्या है  इसके लौटाने के भाव । पैसे रहते हुए कुछ खरीद न पाया ऐसा ये बाजार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । क्यों मुझे इतना बड़ा बनाया कि माँ के गोद में नहीं समा पाता , क्या किसी ने ऐसा रास्ता नहीं बनाया जो मुझे बचपन में पहुँचा पाता । सिर्फ मैं नहीं मेरे बुढ़े दोस्त भी जूझ रहे  सभी लाचार हैं , जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । स्वार्थ भरी इस दुनिया में  मैं बच्चा ही अच्छा था , एक तु ही समय था झुठा ,  और मेरा बचपन सच्चा था । तुझे छोड़ और किसी से शिकायत नहीं  मेरा ये संस्कार है । जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । कोई होता जो मेरे बचपन को  पिंजरे में डाल देता , ‘ तेरा ...

'मेरी तनहाई' MERI TANHAI

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( नोटः- दोस्तों! यह मिली-जुली हिन्दी-उर्दु कविता है। इसमें मैंने एक उदास प्रेमिका का जिक्र किया है जिसमें वह बिल्कुल अकेला है और यह भी बताया है कि अपने प्रेमिका को याद कैसे करता है, प्रेमिका के जुदाई ने उसका कैसा हाल बना दिया है। ) मेरी तनहाई खामोश बैठे देख के पूछा मेरी तनहाई ने, क्या हाल तेरा बना दिया इतनी थोड़ी जुदाई ने। चेहरे पे बनाये रखे हो ये बनावटी मुस्कान, छुपाये न छुपेगा ये सभी लोग जाएंगे जान मंजील अभी दूर है पर वो तुम्हारे करीब है, इस खेल में अभी वो अमीर पर तुम गरीब है एक बार नहीं सौ बार कहा है तुम्हारे भाई ने, क्या हाल तेरा बना दिया इतनी थोड़ी जुदाई ने। खामोश बैठे देख के पूछा मेरी तनहाई ने, क्या हाल तेरा बना दिया इतनी थोड़ी जुदाई ने। पता नहीं आँखा में नींदे कहाँ गुम हो गई, खोये-खोये रहते हो जैसे कहीं बड़ी रूम हो गई दरवाजे से जैसे खुशबु भरा हवा का झोंका आया है, शायद वो तुम्हारे सनम की बालों की महक लाया है जाने कितने दिल रौशन किए इस एक सलाई ने, क्या हाल तेरा बना दिया इतनी थोड़ी जुदाई ने। खामोश बैठे देख के पूछ...

'हाशिए भर जिंदगी' HASHIYE BHAR ZINDAGI

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(नोटः- दोस्तों! यह कविता एक ऐसे व्यक्ति के उपर आधारित है जो बिल्कुल पढ़ा-लिखा बेरोजगार है जो घर पर ही हर वक्त रहा करता है और अपने भविष्य के बारे में सोचा करता है और उसके बारे में इस कविता के माध्यम से यह भी बताया गया है कि कैसे वो अवसादग्रस्त होकर पागलों जैसा व्यवहार करने लगा है और उसे यह भी मलाल होता है कि वो अपने जीवन में सफल न हो सका, अपने माँ-बाप का नाम रौशन न कर सका। ) हाशिए भर जिंदगी हाशिए भर की जिंदगी मेरी है कहानी, थोड़ा बता दिया, थोड़ी और है बतानी। न ठिकाना, न कोई मंजिल घुमे जा रहा हूँ, क्या कहूँ शायद इसी से पगला कहा जा रहा हूँ एक मैं ही ऐसा ही शख्स हूँ ऐसी मेरी है कहानी, थोड़ा बता दिया, थोड़ी और है बतानी। जिंदगी में कुछ बन न पाया पिता को है अफसोस कोख देख-देख कर माता भी रही होगी उसे कोस सिर्फ मेरा दिया उनके आँख में है पानी थोड़ा बता दिया, थोड़ी और है बतानी। आज मेरी जिंदगी हाशिए पर है पहुँच गई, न खत्म होने वाली सवालों के कगार पर है रूक गई थोड़ी बह गई जिंदगी, थोड़ी और बाकी है बहानी, थोड़ा बता दिया, थोड़ी और है बतानी। चंद कविताओं का बस अपन...

'बंजर धरती' BANJAR DHARTI

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नोट:- जैसा कि इस कविता का शीर्षक है 'बंजर धरती', हमने इसके माध्यम से एक गरीब किसान की स्थिती को उजागर करना चाहा है और हमने बताने की कोशिश की है कि कैसे एक गरीब किसान तन, मन, धन के साथ धान के लिए बिजड़े लगाता है और वर्षा पर आश्रित हो जाता है लेकिन जब वर्षा होने की उम्मीद दूर-दूर तक नजर नहीं आती है तो कैसे उस किसान के खेत के साथ-साथ मन पर भी संभावनाओं का आकाल पड़ जाता है। बंजर धरती बंजर धरती   बंजर खेत की है पहचान कल भी नंगा आज भी नंगा है किसान प्रकृति ने है तेरी बड़ी हँसी उड़ाई है दो दरारों के बीच ये कैसी खाई दरारें प्रेमी-प्रेमिका अभिनय हैं करते आपस में मिलने के लिए हैं तरसते एक बुंद के लिए तड़पती है ये हिंदुस्तान बंजर धरती   बंजर खेत की है पहचान कल भी नंगा आज भी नंगा है किसान रो-रोकर हमसे पुछते हैं ये बिजड़े बिन पानी इस बार हम हैं क्या पिछड़े आँखों में खो गया वो बारिश का पानी आज तो बादर भी हो गया है अभिमानी किसान के मुख पर है रोती हुई मुस्कान कल भी नंगा आज भी नंगा है किसान बंजर धरती   बंजर खेत की है पहचान कल भी नंगा आज भ...

'हमारा देश और देवदास' HAMARA DESH AUR DEVDAS

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हमारा देश और देवदास देश में चारों तरफ भरे पड़े हैं सिर्फ देवदास पता नहीं चलता कौन है मालिक कौन है दास बस यही एक रोना है जमाने के पास कोई सच्चा देशभक्त हो,   देश की है तलाश देश पर मिटना शायद किसी को नहीं है रास गाँधी नहीं गाँधीवादी तो होते कोई एक काश यही उम्मीद पे लगाए बैठा हूँ मैं अपनी आस हिंसा से तपती धरती की कब बुझेगी प्यास सिने पकड़कर लेते हैं आज वो साँस डरते हैं कहीं लेना न भूल जाँए वो साँस मानव को आज अपने पर नहीं है विश्वास आज तुम्हारी जिंदगी बन कर रह गई है प्लास नहीं उठाओगे उसका बोझ,   कल कौन उठाएगा तुम्हारी लाश तुम और सिर्फ तुम हो इस देश के एक खास वरना तुम्हीं और तुम्हीं से हागी इसकी नाश । *********************************                   -------- रोशन कुमार सिंह

'ये रिश्ते' YE RISHTEY

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ये रिश्ते रिश्तों की कहाँ तक है दूरियाँ किसने है ये जाना, हमने भी देखी है दुनिया आज है अपना कल बेगाना रिश्ते को जुुड़ते देखा है तो टुटते भी देखा है हमने, रिश्ते का प्यार देखा है तो नफरत भी देखा है हमने अब है मिलन गीत तो दुजे पल विरह भी है हमें गााना, हमने भी देखी है दुनिया आज है अपना कल बेगाना रिश्तों की कहाँ तक है दूरियाँ किसने है ये जाना, हमने भी देखी है दुनिया आज है अपना कल बेगाना आजकल चेहरे पर है मुखौटे या मुखौटे पर हैं चेहरे, बहुत ज्यादा है गलतफहमी है कौन है तेरे कौन है मेरे कहाँ से आए हैं ये रिश्ते किसने है इसे अपना बनाया, हमने भी देखी है दुनिया आज है अपना कल बेगाना रिश्तों की कहाँ तक है दूरियाँ किसने है ये जाना, हमने भी देखी है दुनिया आज है अपना कल बेगाना रिश्ते बनते जा रहें हैं पता नहीं क्या हैं मजबूरियाँ, तुम हमसे प्यार न करो क्या यही है हमारी कमजोरियाँ बड़ो से छोटा होना मजबूरी नहीं नसीब है, ये है उन्हें बताना, हमने भी देखी है दुनिया आज है अपना कल बेगाना रिश्तों की कहाँ तक है दूरियाँ किसने है ये जाना, हमने भी देखी है ...

'पहली मुलाकात जुदाई के बाद' PEHLI MULAKAT JUDAAI KE BAAD

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पहली मुलाकात जुदाई के बाद आज जब उनसे हमारी नजरें मिली, और कुछ नहीं तो उन्हें हमारी तन्हाई मिली। जहाँ उनको हमने खोया था इंतजार वहीं है, लेकिन अब उनके दिल में हमारे लिए प्यार नहीं है। हमने तो उन्हें खोने का कभी सपना ही नहीं देखा था, हमने सिर्फ उनका ही औकात देखा अपना ही नहीं देखा था। तो क्या हुआ हमें नहीं, उन्हें तो खुशी मिली वो दुनिया से डर गई या डर गई हमसे उनकी होंठों के सुर्खियों को हमने आजतक नहीं भुलाया है जबकि उसने उनकी याद दिलाकर हमें बहुत रूलाया है तो क्या हुआ वो नही उनकी यादें तो मिली आज जब उनसे हमारी नजरें मिली और कुछ नहीं तो उन्हें हमें तन्हाई मिली ऐसा कौन शख्स है जो हमें आपके दिल से निकाल दिया उस शख्स से रूबरू तो हो जिसने आपको ऐसा ख्याल दिया ऐसी क्या बात है जो आप उसके करीब हो गए एक आप इस खेल में अमीर, एक हम गरीब हो गए आज जब उनसे हमारी नजरें मिली, और कुछ नहीं तो उन्हें हमारी तन्हाई मिली।                        ...

'बचपन मेरा लौटा दो ' BACHPAN MERA LAUTA DO

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         बचपन मेरा लौटा दो रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । दोस्त छिना , स्कूल छिना  छिना तुमने वो कागज का नाव , कोई जाए , जाकर पुछे क्या है  इसके लौटाने के भाव । पैसे रहते हुए कुछ खरीद न पाया ऐसा ये बाजार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । क्यों मुझे इतना बड़ा बनाया कि माँ के गोद में नहीं समा पाता , क्या किसी ने ऐसा रास्ता नहीं बनाया जो मुझे बचपन में पहुँचा पाता । सिर्फ मैं नहीं मेरे बुढ़े दोस्त भी जूझ रहे  सभी लाचार हैं , जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । स्वार्थ भरी इस दुनिया में  मैं बच्चा ही अच्छा था , एक तु ही समय था झुठा ,  और मेरा बचपन सच्चा था । तुझे छोड़ और किसी से शिकायत नहीं  मेरा ये संस्कार है । जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । कोई होता जो मेरे बचपन को  पिंजरे में डाल देता , ‘ तेरा ...

'मैं मशीन बन गया ' MAI MACHINE BAN GAYA

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      मैं मशीन बन गया          थका हारा रोज शाम को, लौट जाता हूँ अपने घर की ओर । जिम्मेवारियों की जंजीरों से, जकड़ गया हूँ जाऊँ तो जाऊँ किस ओर ।। थोड़ा सा थोड़ा सा करते-करते, अब काम बहुत बड़े होने लगे । मना भी करता तो मैं किसे, मेरी जरूरतें जो बड़े होने लगे । लगता है जैसे मैं एक मशीन बन गया, यही सोचते-सोचते जिंदगी गमगीन बन गया । भागा फिरता हूँ सुबह से शाम ईधर-उधर, इस काम के व्यस्तता में संबंध टुट गए जो थे मधुर । न चाहकर भी थकने लगा हूँ मैं, बातें अब छोटी-छोटी करने लगा हूँ मैं । चला था मैं कहाँ से, कहाँ पहुँच गया, जिंदगी में कुछ बदल न पाया बस समय बदलता गया । दोस्त भी मेरे अब सारे न जाने कहाँ चले गए, शायद अपने जिम्मेवारियों का बोझ ढ़ोने चले गए । रात के अंधेरे में जैसे खड़ा हो गया हूँ एक ओर कुआँ तो खाई है एक ओर, जिम्मेवारियों की जंजीरों से, जकड़ गया हूँ जाऊँ तो जाऊँ किस ओर । थका हारा रोज शाम को, लौट जाता हूँ अपने घर की ओर । जिम्मेवारियों की जंजीरों से, जकड़ गया हूँ जाऊँ तो जाऊँ किस ओर ...

'मित्रों की कमियाँ' MITRO KI KAMIYAN

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'मित्रों की कमियाँ' ना जाने ऐसी बात क्यों हुई,  जो भी हुई मेरे साथ क्यों हुई।  दोस्त भी दुश्मन के साथ हो गए, पहले क्या था अब क्या हो गए  सभी एक दूसरे के प्यारे हो गए, एक हम ही है जो बेसहारे हो गए  ना जाने ऐसी बात क्यों हुई,  जो भी हुई मेरे साथ क्यों हुई।  मेरा कसूर क्या था क्यों नहीं बताया, तुमलोग तो अपने थे फिर क्यों नहीं समझाया सिर्फ तुम मेरे दोस्त हो यही जताया, गलती बताने के बजाय बाल सहलाया ना जाने ऐसी बात क्यों हुई,  जो भी हुई मेरे साथ क्यों हुई।  मेरे गलतियों पर कबतक पर्दा डालोगे, एक दिन तुम मुझे जरुर बताओगे नहीं तो सबके रहते मुझे अकेले पाओगे, 'मैं बुरा हूँ' तुम मझसे कहोगे हाँ कहोगे ना जाने ऐसी बात क्यों हुई,  जो भी हुई मेरे साथ क्यों हुई। ******                   ------ रोशन कुमार सिंह 

'दोस्त को समझो' DOST KO SAMJHO

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चार लोगों  से बस्ती बसते  नहीं, दोस्त बन जाते हैं दोस्ती समझते नहीं  दोस्त को अपने बारे में समझाने की जरुरत है  ऐसा दोस्त भी मिला कोई गणिमत है  ढूंढने की जरुरत नहीं ऐसे ही तो बहुत हैं  दोस्त को ये बताओ नहीं वो बोलेगा गलत है    चार लोगों  से बस्ती बसते  नहीं, दोस्त बन जाते हैं दोस्ती समझते नहीं  तुम्हे मुझसे तकलीफ होगी मुझे बोलना,  एक नहीं अपने सारे के सारे तकलीफ खोलना  अगर गलती पहले मैंने की मुझे सुनना, तुम मुझे दोस्त कहते हो थोड़ा तो समझना    चार लोगों  से बस्ती बसते  नहीं, दोस्त बन जाते हैं दोस्ती समझते नहीं  कहने की सारी बातें सुनते कहाँ  दोस्त बना लेते हैं दोस्ती समझते कहाँ  तुम भी आओगे हम जा रहें है जहाँ  समझो अब तो समझो, नहीं तो आओ वहाँ    चार लोगों  से बस्ती बसते  नहीं, दोस्त बन जाते हैं दोस्ती समझते नहीं  *******         ...