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'बचपन मेरा लौटा दो ' BACHPAN MERA LAUTA DO

         बचपन मेरा लौटा दो रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । दोस्त छिना , स्कूल छिना  छिना तुमने वो कागज का नाव , कोई जाए , जाकर पुछे क्या है  इसके लौटाने के भाव । पैसे रहते हुए कुछ खरीद न पाया ऐसा ये बाजार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । क्यों मुझे इतना बड़ा बनाया कि माँ के गोद में नहीं समा पाता , क्या किसी ने ऐसा रास्ता नहीं बनाया जो मुझे बचपन में पहुँचा पाता । सिर्फ मैं नहीं मेरे बुढ़े दोस्त भी जूझ रहे  सभी लाचार हैं , जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । स्वार्थ भरी इस दुनिया में  मैं बच्चा ही अच्छा था , एक तु ही समय था झुठा ,  और मेरा बचपन सच्चा था । तुझे छोड़ और किसी से शिकायत नहीं  मेरा ये संस्कार है । जी लेने दो फिर से बचपन मेरा ये अधिकार है । रूक जाओ थम जाओ ए समय मेरी यही पुकार है , जी लेने दो फिर से बचपन को मेरी ये अधिकार है । कोई होता जो मेरे बचपन को  पिंजरे में डाल देता , ‘ तेरा ...

NA'LAYAK' BETE? ना ‘लायक’ बेटे ?

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ना ‘ लायक ’ बेटे ?       मान्यवर ! मैं बहुत बड़ा लेखक नहीं हूँ और ना ही हिन्दी का बहुत बड़ा ज्ञाता हूँ बस अपनी भावनात्मक विचारों को इस लेख के माध्यम से आपके मानसिक पटल पर रखना चाहता हूँ।       अभी कुछ दिन पहले की बात है। रोज की तरह सुबह हुई , मैं तरोताजा होने के बाद बालकोनी में अखबार पढ़ने बैठा साथ में चाय की चुस्कियाँ भी ले रहा था। खबर पढ़ते - पढ़ते मेरी नजर अखबार के चौथे पृष्ठ के निचे वाले पंक्ति पर रूक गई जहाँ मोटे अक्षरों में लिखा था ‘‘ नौकर ने की बुजुर्ग दम्पती की हत्या। ’’ आए दिन इस तरह के खबर से अखबार भरा रहता है तो मैंने भी उतना ध्यान नहीं दिया और अगले पृष्ठ की ओर बढ़ गया लेकिन अचानक मेरे मन में एक जिज्ञासा हुई कि बुजुर्ग दंपती की आखिरकार नौकर ने हत्या क्यों की होगी ? मैंने पीछे की ओर पृष्ठ पलटा और उस खबर को विस्तार से पढ़ने लगा जिसका सारांश कुछ इस तरह था।   ...